Sunday, March 27, 2005

मुख़्तार माई

अभी हाल में पाकिस्तान से आनेवाली सबसे प्रेरक प्रसंगों में से एक घटना जो प्रकाश में आयी है वो है मुख़्तार बीबी या मुख़्तार माई का प्रसंग जैसा की उन्हें आजकल कहा जाता है। उनका संघर्ष सभी औरतों न सिर्फ़ उन औरतों के लिये जो यौन दुराचारों का शिकार बनती हैं बल्कि सभी औरतों के लिये प्रेरणास्पद है। आजकल भारत और पाकिस्तान की दोस्ती खूब पींगे भर रही है। क्रिकेट की बात छोड़ भी दें तो तरह तरह के व्यापारियों, साहित्यकारों, कलाकारों के प्रतिनिधीमंडल दोनों तरफ आ-जा रहे हैं; सड़कें खुल रही हैं, दिल से दिल मिलने-मिलाने की बाते मोटे तौर पर हो रही हैं। मिलाजुलाकर कहें तो फ़िजाँ में दोस्ती का सकारात्मक माहौल घुल रहा है। खैर इंतज़ार अब भी बाकी है कहीं ये सब हवाबाजी ही न रह जाए कहीं कुछ खटका हुआ और खिंची फिर से तलवारें।

दोनो तरफ से समाचारों का आदान प्रदान और सूचनाओं की अदला-बदली दोनों तरफ के औरतों की हालातों के बारे में भी जानकारी ला रही है और इन सूचनाओं में सबसे प्रेरक और दु:खद जानकारी मुख़्तार बीवी की घटना रही है। जून 2002 में तीस वर्षीया मुख़्तार का मीरवाला, पाकिस्तान में सरेआम सामूहिक बलात्कार किया गया। उसको यह दंड मिला क्योंकि उसके छोटे भाई के बारे में अफ़वाह थी कि उसे प्रतिद्वंदी कबीले के किसी लड़की के साथ देखा गया था। जब मुख़्तार कबिलाई पंचायत में पहुँची तब उसके भाई को तो छोड़ दिया गया लेकिन पंचायत ने दूसरों को सबक सिखाने के लिये मुख़्तार के लिये सजा तय कर दी गयी। चार "स्वयंसेवक" इस नेक काम के लिये आगे आये और बलात्कार के बाद उसे नंगा कर घुमाया गया और तबतक घुमाया गया जब तक मुख़्तार के पिता ने रहम की अपील करते हुये उसे शाल ओढाकर घर न ले गये। कहानी शायद यहीं खत्म हो गयी होती। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मुख़्तार के परिवारवाले और उसके कुछ करीबी दोस्तों ने लड़ाई आगे बढाने की ठानी। मुख़्तार एक पढी-लिखी महिला थीं और गाँव के बच्चों को इस्लाम की तालीम दिया करती थीं। स्थानीय मस्ज़िद के कुछ ईमामों ने भी मुख़्तार का साथ दिया और इस घटना के प्रति अपना विरोध दर्ज़ करवाया। मुख़्तार के दोस्त उसके साथ आये और अदालती लड़ाई का ऐलान किया गया। इन सबके परिणामस्वरूप मुख़्तार की चर्चा पूरे पाकिस्तानी मीडिया में हुई और अंतत: एक विशेष अदालत ने जुलाई 2002 में छह आरोपियों को मौत की सज़ा सुनाई और मुख़्तार को मुआवज़ा देने की घोषणा की गयी। मुख़्तार ने इस राशि का इस्तेमाल लड़कियों के लिये एक स्कूल खोलने में किया। सज़ायाफ़्ता आरोपियों ने इस फैसले के खिलाफ़ लाहौर उच्च न्यायालय में अपील की इस महीने की तीन तारीख को अदालत ने फैसला पलट दिया हलाकि 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर बहुत से महिला संगठनों ने मुख़्तार के समर्थन में रैलियाँ कर के दवाब बनाने की कोशिश की, मुख़्तार को डर था कि अपराधियों को अगर यूँ ही छोड़ दिया गया तो उसकी जान को भी खतरा हो सकता है। लेकिन एक बार फिर से मुख़्तार के भाग्य ने साथ दिया और 12 मार्च को केन्द्रीय शरिया अदालत ने मुक़दमें की फिर से सुनवाई का आदेश दिया और तब तक दोषियों को रिहा न करने का आदेश दिया। निश्चित तौर पर मुख़्तार के लिये यह राहत की बात थी। हलाकि मुख़्तार को तत्काल राहत तो मिल गयी है लेकिन मामले की सुनवाई जब शुरु होगी तो "हुदूद अधिनियम" के तहत ही जिससे मुख़्तार के पक्ष में फैसला होने की उम्मीद नहीं के बराबर है।

पाकिस्तान में मुख़्तार की घटना अपनी तरह की अकेली और कोई अनोखी घटना नहीं है। कबीलाई पंचायत में ऐसी सजाएँ अक्सर सुनाई जाती रहती हैं। महिला संगठन ऐसे पंचायतों पर प्रतिबंध लगाने की माँग हमेशा से करती रही हैं लेकिन अब तक सिर्फ़ आश्वासन ही हासिल हुये हैं। लेकिन मुख़्तार माई के संघर्ष से इस मुहिम को एक नयी जान मिली है। हलाकि भारत में ऐसे कबिलाई पंचायत नाममात्र को है जहाँ ऐसी सजाएँ मुकर्रर की जाती हों लेकिन यहाँ की कहानी भी कुछ जुदा नहीं है आज भी मध्यप्रदेश, झारखंड, उत्तरप्रदेश और देश के कई हिस्सों से महिलाओं (खासकर निम्न जाति की महिलाओं) को नंग्न कर घुमाने की घटनाएँ सुनने को मिलती ही रहती है। अव्वल एक तो ये मुख्यधारा के पत्र पत्रिकाओं में जगह बना ही नही पाती और जब आती है तो शुरू हो जाती है लीपा-पोती, बलात्कार से भी भयंकर त्रासदी से महिलाओं को गुजरना पड़ता है न्याय पाने की प्रक्रिया में, लेकिन उम्मीद है मुख़्तार जैसी औरतों का संघर्ष बेजा नहीं जायेगा।

(हिंदू, बीबीसी, द डान, इंडियन एक्सप्रेस और इंडिया टुगेदर की खबरों का सार)

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