Thursday, June 08, 2006

अनासी और गोलू


नंदन-वन में एकबार अनासी मकड़े ने किसी के बागीचे से कुछ बहुत ही स्वादिष्ट आलू माँगकर लाए। उसने बड़े चाव से उन आलुओं को पकाया, उसकी खुशबू दूर तक फैल गयी। आलू पकते पकते उसका सब्र जवाब दे गया। वह चाहता था कि जल्दी से जल्दी आलू पके और वह उसका मज़ा ले सके। लेकिन आलू जब पक कर तैयार हो गये और अनासी जैसे ही आलू खाने के लिए बैठा उसके दरवाज़े पर दस्तक हुई। कछुआ महाराज गोलू काफी लंबा सफर करके वहाँ पधारे थे और काफी भूखे थे।

“अनासी भैया, राम राम,” कछुए ने अभिवादन किया और बोला – “मैं काफी दूर से चलकर आ रहा था कि आलू पकने की इतनी अच्छी खुशबू आई कि मैं खुद को रोक न सका। क्या तुम अपने भोजन में से थोड़ा मुझे भी दोगे?
अनासी मना नहीं कर सका, क्योंकि उस देश में अतिथियों के साथ भोजन बाँटकर खाना एक परंपरा और संस्कृति की तरह थी। लेकिन वह खुश नहीं था, क्योंकि अनासी काफी लालची था और पूरा आलू खुद ही खाना चाहता था। अनासी ने मन ही मन एक योजना बनाई।

“आओ, आओ गोलू भाई, अंदर आ जाओ। आज के दिन आप जैसा मेहमान पाकर मैं धन्य हो गया, अरे वहाँ दरवाज़े पर क्यों खड़े हो, अंदर आओ न, कुर्सी पर बैठो। गोलू अंदर आकर बैठ गया लेकिन जैसे ही उसने आलू खाने के लिए हाथ बढाया, अनासी चिल्ला उठा – “अरे तुम्हें मालूम नहीं क्या कि खाने से पहले हाथ अच्छी तरह से धो लेना चाहिए?”

गोलू ने अपना हाथ देखा, उसके हाथ सचमुच बहुत गंदे थे। आखिर वह पूरे दिन यात्रा करता रहा था और उसे रास्ते में हाथ पैर धोने का कोई अवसर ही नहीं मिला था। गोलू उठा और हाथ मुँह धोने के लिए नदी की ओर चल पड़ा। जब वह हाथ मुँह धोकर वापस अनासी के पास पहुँचा तो अनासी ने खाना शुरु कर दिया था।
“मैं नहीं चाहता था कि तुम्हारे आने तक आलू ठंडे हो जाएँ इसलिए मैंने खाना शुरु कर दिया, लेकिन कोई बात नहीं अब तो तुम मेरा साथ दे सकते हो"
गोलू खाने के लिए बैठा, और जैसे ही उसने आलुओं को हाथ लगाया, अनासी फिर चिल्ला उठा, “अरे तुमने सुना नहीं क्या, खाने से पहले हाथ अच्छी तरह धो लेने चाहिए। गोलू ने अपना हाथ उलट-पुलट कर फिर से देखा उसके हाथ नदी से अनासी के घर तक आने में फिर से गंदे हो चुके थे क्योंकि चलते समय कछुए के हाथ नीचे जमीन के संपर्क में रह्ते हैं। मन मारकर गोलू को हाथ मुँह धोने दोबारा नदी पर जाना पड़ा। और जब गोलू इस बार लौटा, उसने इस बात का खास खयाल रखा कि वह घास पर चले ताकि अनासी के पास पहुँचने तक उसके हाथ गंदे न हों। लेकिन जब तक कछुआ अनासी के घर तक पहुँचा अनासी उन स्वादिष्ट आलुओं को चट कर चुका था। गोलू दु:खी तो हुआ लेकिन उसने अनासी से कोई अपशब्द नहीं कहा। उसने अनासी से कहा – “अपने साथ भोजन कराने का शुक्रिया दोस्त, कभी हमारी तरफ़ आओ तो मुझे मेहमान-नवाज़ी का मौका जरुर देना।“ और यह कहकर वह जाता रहा।
दिन बीतते गये और अनासी को कभी कभी उन स्वादिष्ट आलुओं की काफी याद आती। एक दिन उसे गोलू की बात याद आई और मुफ़्त में भोजन करने का लोभ वह नहीं रोक पाया। एक दिन वह कछुए के घर की तलाश में निकल पड़ा।
काफी घूमने के बाद उसे गोलू नदी के दूसरी ओर धूप सेकता हुआ मिला। गोलू ने जैसे ही अनासी को देखा वह बोल पड़ा – “अरे अनासी, तुम ईधर कैसे? क्या रात का भोजन साथ करने आये हो? “अरे हाँ-हाँ” अनासी ने कहा। हर पल बीतने के साथ उसकी भूख बढती जा रही थी। गोलू दोनो के लिए खाने की मेज़ तैयार करने पानी के अंदर अपने मकान में चला गया। लेकिन जल्दी ही वह वापिस उपर आया और उसने अनासी से कहा – हमलोग खाना खाने चलें? और यह कहकर उसने पानी में गोता लगाया और अपने मकान में पहुँचकर भोजन शुरु कर दिया।
अनासी ने भी पानी में छलांग लगाया लेकिन वह पानी की तह तक नहीं पहुँच सका। उसने तैरने के बहुतेरे पैंतरें अपनाये लेकिन वह बार बार पानी की सतह पर पहुँच जाता। उसने गोता लगाने की कोशिश लेकिन कोई फ़ायदा नहीं हुआ। इस बीच गोलू अपना भोजन धीरे धीरे करता रहा।

अनासी इतनी आसानी से मुफ़्त का भोजन गँवाने को तैयार नहीं था, वो हार कहाँ मानता। वह नदी के किनारे टहलते हुए सोचता रहा कि क्या किया जाए। अचानक उसे सूझा कि क्योंकि वह इतना हल्का है कि वह पानी के तल में नहीं पहुँच सकता। उसने पत्थर के छोटे छोटे टुकड़े उठाकर अपने जैकेट की जेब में डालने लगा। और अबकी बार जब उसने गोता लगाया तो सीधे तलहट में गोलू के घर खाने की मेज के पास ही पहुँचा। मेज काफी अच्छी तरह सजा हुआ था और उसपर तरह तरह के खाने की स्वादिष्ट चीजें रखी हुईं थीं। अनासी की आँखें फटी की फटी रह गयीं। उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसके सामने इतने लज़ीज़ पकवान हैं। उसकी भूख काफी बढ गयी और वह शुरु करने का इंतज़ार नहीं कर सका।
लेकिन अनासी ने जैसे ही खाने को हाथ लगाया कछुए ने कहा – “मेरे देश में खाने की मेज़ पर जैकेट पहनकर नहीं बैठते”। अनासी ने देखा कि गोलू ने भी अपना जैकेट नहीं पहन रखा है। यह देखकर अनासी ने अपना जैकेट उतार दिया। लेकिन उसने जैसे ही जैकेट उतारा बिल्कुल राकेट की तरह वह फिर से पानी के उपरी सतह पर जा पहुँचा। उसने पानी में झाँककर देखा तो गोलू मजे से अपना भोजन कर रहा था। अनासी अपना मन मसोसकर रह गया। अब तो उसके पास अपना जैकेट भी नहीं था कि वह नीचे जा सके।


अफ़्रीकी लोककथा पर आधारित