Monday, November 21, 2005

लो मैं आ गया

देवियों और सज्जनों: गर्मियों में ग़ायब हुआ था अब सर्दियों का मौसम है और अब जाकर फिर से वापसी हो रही है। चिट्ठा लिखना एक तरह से मेरे सबसे अज़ीज़ कामों में शुमार हो गया था; लेकिन क्या करें बहुत चाहते हुए भी इतने दिनों अपने (और अन्य) चिट्ठे को देखने तक वापस नहीं आ सका। वक़्त ही कुछ बुरा चल रिया है। ख़ैर अब सोचा है वक़्त चाहे जैसा भी चले जब भी मौका मिला चिट्ठा लिखने से नहीं चूकना। इस बीच हिन्दी चिट्ठा जगत ने लगता है काफी छलांगे भरी हैं, कई चिट्ठाकारों ने शुरुआत मे हिन्दी चिट्ठाकारी को संशय की दृष्टि से देखा था, मुझे भी कुछ-कुछ ऐसा ही लगता था। परंतु अब इतने सारे रंग देखकर कहा जा सकता है कि वसंत दूर नहीं। हिन्दी के बहुत सारे उत्कृष्ट जालघर भी पिछले दो-तीन दिनों मे मैंने देखे। तो, चिट्ठाकार बंधुओं, मेरा अभिवादन स्वीकार हो, बहुत जल्द ही अपना हुक्का भी चौपाल में फिर से गुड़गुड़ाएगा। तबतक के लिए सबको म्हारो राम-राम सै।

4 comments:

  1. अरे वाह ठाकुर,दुबारा देख के मन खुश हो गया। फिर से स्वागत।

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  2. वापसी पर आपका स्‍वागत है।

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  3. मैं जानता था कि तुम जरूर आओगे |

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  4. Aapkiblog padh kar to tabiyat khush ho gayi. Achaanak se hindi saahitya padhne ki laalsa jaag gai. Is tarah ki shudh hindi ya fir hindi jo ki angrezi se prabhavit na ho, use dekh kar ek ajeeb se zamaane ki yaad aa jaati hai, jise maine khudh hi na jiya ho shaayad, ek ajeeb saa nostalgia.
    Nostalgia hindi mein kya hoga? yaadgaar?
    Asha hai aap apni blog jaari rakhenge.
    Shukriya.

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