Wednesday, May 11, 2005
बाय बाय
गर्रर्रर्रर्र अब थक गया मैं...तीन तीन चिट्ठा एक ही दिन में लिख के फ्रस्टिया गया. का करें ....शायद एही सोच सोच के लिख गया के अब पता नहीं कब बैठारी होगा. मज़े कीजिए संतजनों और इंतज़ार कीजिए अगले एपीसोड्स का...यात्रा आरे हमरा ट्रैभल काथा सुनने के लिए. नरभसाइए मत अभिए से थोडा मूड फिरेश होगा तो ठीके लिखेंगे. इहाँ त अफिसवा में बैठल बैठल दिमाग दुखा जाता है न. चलिए आप लोग आपना आपना टेक केयर कीजिए. गाँव-वालों मैं जा....शुकुल बाबा हम आ रहा हूँ....
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aapaaki tatkaal seva to badhi jabardast he vijaya bhai, kissagoi ke sabhi guN hen -badhai-Rati Saxena
ReplyDelete"बन्दर लैम्पंग" पर लिखे लेख का पहला भाग यहाँ "छाया" पर है।
ReplyDeleteअरे कहाँ चले गये आप???
ReplyDeleteअब तक तो आपका 'मूड फिरेश' हो जाना चाहिए
ReplyDeleteविनम्र निवेदन है कि ज़रा फिर से वापस आइये।