Wednesday, March 30, 2005

टेरी: ज़िंदा या मुर्दा ?

अधमरा होकर जीने से अच्छा क्या मौत है? टेरी श्याव के मामले में विषद जानकारीपूर्ण और गंभीर लेख रमण कौल जी की कलम से उनके चिट्ठे पर लिखा गया। रमण भाई ने एक तरह से अपना मत भी स्पष्ट कर दिया है कि अगर वे इस स्थिति में होते तो निश्चय ही मरना पसंद करते। फिर उनकी दुविधा भी दिखी कि क्या इसके लिये उन्होंने कोई वसीयत छोड़ रखी है, और कहते हैं नहीं। लेख पढा, टिप्पणी लिखने के लिये अपने कर्सर को भी वहाँ ले गया फिर सोचा -- फिर कभी। दुबारा, तिबारा भी गया लेकिन फिर से वही सोचा -- अच्छा फिर कभी। लेकिन प्रश्न मन में बराबर बना रहा। टेरी तो खैर बोल नहीं सकती कि आखिर वो क्या चाहती है। लेकिन "ईच्छा मृत्यु" या मर्सी किलिंग का प्रश्न हमेशा से मौज़ूद रहा है। चाहे वो भारत का मामला हो या दुनिया के किसी भी देश का कहीं इसकी ईज़ाज़त है तो कहीं पुरजोर खिलाफ़त है। हाँ एक बात अवश्य है कि देश चाहे जो भी हो दोनों विचारों के लोग मौज़ूद है चाहे राजनैतिक खेमा कोई भी हो क्योंकि यह प्रश्न हमारे अस्तित्व के मूलभूत प्रश्नों में से एक है और इसपर अलग अलग मत हमेशा से रहे हैं और शायद आनेवाले न जाने कितने समय तक बना रहेगा। यह निर्भर करता है कोई व्यक्ति "होने" या "न होने" या फिर दूसरे शब्दों में ज़िंदगी और मौत को किस निगाह से देखते हैं। इस विवाद (मूल प्रश्न) को अक्सर हम आधुनिक/माडर्न/रैडिकल/सेक्यूलर बनाम धार्मिक/पुरातन/अप्रगतिशील का चश्मा लगाकर देखते/पढते/सोचते और समझते हैं। मैं अगर इसे "अपनी समझ" से देखने की कोशिश करता हूँ इस प्रश्न पर आकर ठहर जाता हूँ कि - ज़िंदगी समाप्त करने का हक़ किसे होना चाहिये? फिर उसी से प्रश्न से प्रश्न उपजता है कि आखिर "ज़िंदगी" है क्या चीज? गीता से लेकर अन्य धर्मों के बड़े बड़े ग्रंथ और "आधुनिक" विज्ञान के महत्वपूर्ण ग्रंथों ने इसपर बहुत माथापच्ची की है; मैंने निजी तौर पर इनमें से किसी भी बड़े ग्रंथ का अध्यन नहीं किया है, जो भी "जानकारी" है वो अन्य "माध्यमों" से छनकर मुझतक पहुँची है। लेकिन नतीज़ा - वही ढाक के तीन पात। जहाँ तक धर्मग्रंथों का सवाल है तो मुझे लगता है वे खुद भी इस पर एक मत नही हैं अगर हम हर धर्म के धर्मग्रंथों की बात ले लें। हाँ एक बात पर (शायद) हर धर्मग्रंथ सहमत है कि "जीवन अमूल्य है"। पर फिर वहीं के वहीं कि क्या इस जीवन पर हमारा और सिर्फ़ हमारा 'अधिकार' हो या फिर हमसे 'इतर' किसी 'दूसरे' का भी अधिकार है। क्या टेरी की ज़िंदगी पर सिर्फ़ उसका हक़ है, या उसके पति का या उसके माता-पिता का या इनमें से किसी का नहीं या सबका? क्या टेरी की "चेतना" शेष है? (चेतना है क्या चीज?), क्या टेरी अभी ज़िंदा है, या टेरी की सप्लाई नली हटा देने से टेरी "मर" जायेगी?

"सांसारिक मौत" को आमतौर पर दो तरह से देखा जाता है, एक तो जब आपका दिल/हृदय धड़कना बंद हो जाए। तो क्या आदमी सचमुच मर जाता है। शायद आपको भी किसी खास स्थिति में ऐसा अनुभव हुआ हो जब क्षण भर के लिये सही आपकी धड़कन "जम" गई हो। तो क्या हम उस समय मर चुके होते हैं? और जब धड़कन फिर से शुरु हो जाता है तो हम वापस जी जाते हैं? रमण भाई डूबने से बचने के बाद क्या आपको ऐसा कोई अनुभव हुआ था?

दूसरी स्थिति में हम तब मान लेते हैं कि फलाँ मर चुका है जब उसका मस्तिष्क (खासकर सेरेब्रल कारटेक्स का हिस्सा) "डीफंक्ट" या अक्रिय हो जाता है जैसा कि टेरी के साथ हुआ है। ऐसी स्थितियाँ खासकर दुर्घटनाओं की स्थिति में पैदा होती हैं। जब यदा कदा यादाश्त भी चली जाती है। लेकिन इस बात के भी प्रमाण मौज़ूद हैं कि आठ-आठ, दस-दस साल बाद लोगों की यादाश्त वापस आ जाती है। ये कैसा "चमत्कार" है? क्या टेरी के मामले में ऐसा नहीं हो सकता कि "इस वक़्त हमारे मेडिकल साइंस" के पास इसका कोई तोड़ मौज़ूद नहीं है"?

खैर, इस वक़्त मुझे पंचतंत्र में पढी एक कहानी याद आ रही है। कुछ लोगों ने हाथी कभी नहीं देखा था। उनकी आँखों पर पट्टी बाँध कर सबको बारी बारी से हाथी के सामने छोड़ दिया गया। सबने हाथी को छूकर देखा। फिर उनसे पूछा गया कि बताओ भाइयों "हाथी कैसा होता है?" जिसने हाथी की पूँछ को cछुआ था उसने कहा: हाथी रस्सी की तरह होता है। जिसने हाथी का पैर छुआ था उसने कहा: हाथी केले के पेंड़ के तने की तरह होता है। और दूसरे लोगों ने भी इसी तरह अलग-अलग जवाब दिये……
(अभी अभी मिली खबर के मुताबिक टेरी के माता-पिता की अपील अटलांटा की अदालत द्वारा भी ठुकरा दी गयी है)

3 comments:

  1. विजय भाई
    इस सिलसिले में एक बड़ा मजेदार अनुभव है| भारत में तो जहाँ छीँक को कभी कभी अपशकुन माना जाता है वहीं अमेरिका में लोग कहते हैं "God bless you", पूछने पर पता चला कि छींकते समय क्षणांश को आपकी साँस रूक जाती है , उसे मृत्यु समान समझ कर लोग बोलते है "God bless you", ताकि आप अच्छी आत्मा बने रहे|

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  2. छींकना ज्यादतर संस्कृतियों में अपशकुन ही माना जाता है; और जो वजह आपने बताई है उसी वजह से। अमरीका या दूसरे अँग्रेजी सँस्कृतियों में "गाड ब्लेस यू" कहते ही इसीलिये हैं। भारत में भी ऐसे ही समान उदगार लगभग सभी क्षेत्रों में पाया जाता है, इस विषय पर शायद शोध भी हो चुके हैं।

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  3. और आज टेरी का देहान्त हो गया। वास्तव में बहुत टेढ़ा प्रश्न है। शायद हम सभी को "लिविंग विल" बना लेनी चाहिए, ताकि इस तरह के पचड़ों से बचा जाए। वास्तव में जीवन बहुमूल्य है, पर क्या ऐसा जीवन भी? गर्भपात का क्या? क्या वह भी कत्ल है? आप की ही तरह मेरे मन में बार बार हिन्दी फिल्म "मुन्ना भाई.." का वह बीमार पात्र याद आता है जिस पर मेडिकल के छात्र प्रयोग कर रहे होते हैं, और मुन्ना भाई का चमत्कारी इलाज उसे जिला देता है। शायद वास्तविक जीवन में भी ऐसा संभव हो। खैर, मेरा अपना मत उस दिन टेरी की मौत के पक्ष में बना जब एबीसी पर सुबह के कार्यक्रम में उन के मेडिकल संवाददाता डा॰ टिम जॉनसन ने दो बातें बताईं - पहली यह कि इस प्रकार जीवनदायक नलियाँ रोज़ हज़ारों बूढों की हटाई जाती हैं, जब उनके ठीक होने के आसार खत्म हो जाते हैं। दूसरी यह कि इस तरह से मौत तड़प तड़प कर नहीं आती, बल्कि एक तरह से प्राकृतिक ऍनेस्थीसिया हो जाता है, जिस से रोगी का अन्त शान्तिपूर्ण ढँग से आता है। मेरा अपना रुझान तो ज़ाहिर है, पर मैं विपरीत विचारधारा की पूरी तरह कद्र करता हूँ। वैसे भी इस विषय पर कोई पक्की राय बना लेना मुश्किल है।

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