बचपन में खेल-खेल में हमलोग यह फ़िकरा बार-बार दोहराया करते थे - ओ ना मा सी धम (ॐ नम: सिद्धम) गुरुजी चितंग। तो लौ भैया गुरुजी तो कब के चितंग हो चुके हैं, पूरे फिलाट। सिर्फ हुकहुका रहे हैं, धोती में ही हो गयी है उनकी, छाता बगल में पड़ा है धूल-धूसरित। अब गुरुजी फिलाट हो गये हैं या कर दिये गये हैं तो कुछ नया भी तो चाहिये ही। हाँ तो अब उनकी जगह आये हैं मास्स्साब याने कि अप्ने "मास्टर"जी। ट्विंकल ट्विंकल कर रहे हैं। मास्स्साब हैं पूरे रिंग मास्टर -जानवरों को सीट-साटकर अईसा ट्रेन करते हैं पूछो मत जानवर ताबड़तोड़ 'कोड' लिखने में जुट जाते हैं। और रिंग मास्साब की नकेल संभाल रक्खी है सर्कस मालिकों ने। जैसा कोड लिखने वालों की जरुरत आन पड़ेगी वैसे रिंग मास्टर निकलेंगे पिटारे से। वाह रे मैनेजमेंट - कितना सुंदर मैनेज कर रक्खा है पूरी ग्लोबल विलेज को।
हाँ एक प्रगति जरूर हो रही है कि अब विदेशी सर्कस मालिकों की जगह देसी सर्कस मालिक सर्कस मैनेज करेंगे। पूरा चप्पा चप्पा मैप आउट किया जाएगा ताकि ठीक से मैनेज किया जा सके। हमें प्रोपरली एड्यूकेट करवाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगें आखिर अब जम्हूरे को स्मार्ट बंदर जो चाहिएँ। जम्हूरा भी लुंगी से टाई में आ चुका है, बंदर भी……
ठाकुर साहब
ReplyDeleteआपने तो वर्तमान भेड़चाल के धुर्रे उड़ाकर रख दिये| मेरे ख्याल से आपकी तंद्रा कुछ और लंबी होती लेख और भी ज्यादा रसभरा हो जाता| न जाने क्यो मुझे लग रहा है आप ने मामला जल्द ही समेट दिया|
अतुल भाई: जल्दी समेटने की वजह थी कि पिछले दो तीन अनुगूँज में भाग नहीं ले सका था, इस बार भी मिस नहीं करना चाहता था सो अंतिम मिनट में मन में जो उमड़ा घुमड़ा बस डाल दिया। निश्चिंत रहिये आगे इस विषय पर मेरे पास कहने को काफी कुछ छटपटा रहा है।
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