Saturday, May 07, 2005
बादल और ई-मेल
कम्प्यूटरमय जगत भयो अब करहुँ प्रणाम जोरि जुग पाणि।
सारी धरती कुटुम भयो हैं इनहिं किरपा से सकल परानी ॥
प्रेमी जन की नाथ तुमहि हो तुम ही सबकी पार लगैया ।
दुनिया के सारे प्रेमी की तुमही हो एकमात्र खेवैया ॥
सजनी दिल्ली सजन शिकागो इंटरनेट पर रोज मिलत हैं ।
तुमहिं दुआरे भेंट करत हैं बैचलर सब अब डेट करत हैं ॥
अब जब जब पिय की याद सतावा पट से दुई ईमेल पठावा
पिय की पाती झट चलि आवा पढि सजनी को मन हरखावा॥
अब नहिं तड़पत नैन किसी के पिय से बिछड़ि विरह कोऊ नारी
अबलन सब अब चैट करत हैं सब महिमा आपहि की न्यारी ॥
जब से वेब कैम चलि आवा पल छिन पल छिन दरशन पावा
जा बदरा अब काहे सतावा अब मोर पिय कोऊ दूर न लागा ॥
जब से भई कम्प्यूटर आवा कालिदास अब तनिक न भावा
मेघदूत की बात करत हौ तनिकौ तुमको लाज न आवा ॥
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बढ़िया लगा.मजेदार.बधाई.पहली लाइन में 'पाणि' की जगह 'पानी'कर दो तो शायद तुक और बढ़िया लगे.
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