Wednesday, November 17, 2004

फटफट सेवा

हिन्दी चिट्ठा संसार को देखकर अति प्रसन्नता हुयी। वेब-क्रांति के ज़माने में ऐसी कोई चीज बड़ी सिद्दत से ढूँढ रहा था। हनुमानजी संजीवनी पर्वत खोज कर ले ही आये। अब जब संजीवनी मिल ही गयी है तो लगता है जीवन अवश्य लौटेगा। कालेज के दिनों में सभी कवि ह्र्दय हो जाते हैं, मैं भी हो गया था तुकबंदी शुरु हो गयी थी। थोड़ा झेंपता अवश्य था परन्तु दो-चार मित्रों को फाँस हीं लेता था अपनी कवितायें सुनाने को। तुकबन्दी तो खैर आज तलक जारी ही है, अब श्रोताओ की घेराबंदी करने की जरुरत नहीं रहेगी शायद। अब कहाँ जाओगे बच्चू, पहली बार में नहीं तो दूसरी बार में झख मारकर पढोगे। खैर, ब्लाग-सेवा को देखकर दिल्ली के फटफट सेवा की याद हो आयी। पुरानी दिल्ली जब भी जाता था तो दिल खोलकर इस सेवा का प्रयोग करता। वैसे इसका नाम फटफट सेवा तो इसकी आवाज़ की वज़ह से पड़ा था, जैसा कि हमारे इलाक़े में मोटरसायकिल को फटफटिया कहा जाता है लेकिन मुझे इसका फटाफट स्वभाव भी अक्सर देखने को मिला। पूरे ट्रैफिक सेवा को धत्ता बताते हुये जिमनास्टिक के सारे पैंतरे सिखाते हुये पलक झपकते ही अपनी मंज़िल पर। ब्लाग-सेवा मुझे कुछ कुछ ऐसा ही लग रहा है। जय हो ब्लाग मैया की। सारे एच टी एम एल और ना जाने क्या क्या गुर सीखने की झंझट से बचा लिया तुमने।

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