निकला है रोड-रोलर
झाड़ जंग दशकों की,
इस रात के अंधेरे में
बस्तियाँ गिराने को,
लोकतंत्र-पथ बनाने को॥
समतल है करना जल्दी
है ठोस पथ बनाना,
कोलतार घट न जाये
मुक्ति के इस पथ की
रफ़्तार घट न जाये॥
चालक बड़ा पुराना है
कई पथ नये बनाये हैं,
जल्दी है अबके लेकिन
सूरज निकल न जाये
कहीं देर हो न जाये॥
चमचमायेगा पथ बनकर
सुबह तलक होने पर
चलेगी बस व लारी
और ऊँट की सवारी
सपनों की लाशें ढोने को॥
बग़दाद से न्यूयार्क तलक
इस मनोहारी पथ पर
हाँ टोल तो लगेगा
डालर अगर नहीं हो
तो तेल भी चलेगा॥
बहुत अच्छे विजय भाई,
ReplyDeleteअच्छी कविता लिखी है.
बधाई स्वीकार करे.