फिर से ले आई है पवन आज
अनुभूति तुम्हारे पास होने की
उष्णता तुम्हारे कोमल सान्निध्य की
झंकृत मन मेरा तुम्हारी छुअन से
परिमल विस्तीर्ण नयन से
इस विस्तीर्णता मे डूबकर गहरे
चाहता हूँ, पढूँ मौन संदेशे तेरे
लिखूँ कोई मूक अबोली कविता
तुम तक दे आये जो
प्रवाह मेरी अनुभूतियों का ॥
बहुत अच्छे मिंयाँ, आज तो तुम्हारी सुरीली आवाज भी सुनाई दे गयी.
ReplyDeleteमजा आ गया.
एक तकनीकी सलाह... आउटपुट फाइल अगर MP3 फारमेट मे हो तो कम जगह घेरती है और क्वालिटी और अच्छी होती है.
लगे रहो, अगली कविता का इन्तजार रहेगा.