Sunday, February 06, 2005

अनुभूति




फिर से ले आई है पवन आज


अनुभूति तुम्हारे पास होने की


उष्णता तुम्हारे कोमल सान्निध्य की


झंकृत मन मेरा तुम्हारी छुअन से


परिमल विस्तीर्ण नयन से


इस विस्तीर्णता मे डूबकर गहरे


चाहता हूँ, पढूँ मौन संदेशे तेरे


लिखूँ कोई मूक अबोली कविता


तुम तक दे आये जो

प्रवाह मेरी अनुभूतियों का ॥






1 comment:

  1. बहुत अच्छे मिंयाँ, आज तो तुम्हारी सुरीली आवाज भी सुनाई दे गयी.
    मजा आ गया.
    एक तकनीकी सलाह... आउटपुट फाइल अगर MP3 फारमेट मे हो तो कम जगह घेरती है और क्वालिटी और अच्छी होती है.

    लगे रहो, अगली कविता का इन्तजार रहेगा.

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