Saturday, February 12, 2005

भाषानामा - प्रथम

मैथिली ब्लाग शुरु करने पर एक निवेदन आया कि मैथिली और हिन्दी में क्या अंतर है उसे समझाया जाये। है तो भाई मुश्किल काम ये, वही दूध और दही में अंतर समझानेवाला, तो मोटे तौर पर यह समझा जाये कि अंतर अंडे और मुर्गी वाला है। वैसे इस विषय पर कई शोधपत्र और किताबें बाजार में उपलब्ध है। तो आज से शुरु होती है भारत की भाषाओं पर इस निबंध श्रृंखला का, जैसे जैसे फुर्सत मिलेगा निबंध बढता रहेगा, कोशिश करूँगा कि इसमें मोटे तौर पर उत्तर भारत की सभी भाषाएँ शामिल हों। भाषाई परिवार इत्यादि का जिक्र न कर मैं सीधे इसके सामाजिक, राजनैतिक और भाषावैज्ञानिक पहलुओं पर लिखने की कोशिश करूँगा।



ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: (आज़ादी से पहले के हालात): आज जिसे हम हिन्दी कहते हैं, उसके प्रारंभिक स्वरूप का दर्शन हमें भारतेंदु हरिश्चंद्र से देखने को मिलता है। इस दौर में उत्तर भारत में जितनी भी क्षेत्रिय भाषाएँ थीं, (उनमें प्रमुख रूप से अवधी, ब्रजभाषा, मैथिली, भोजपुरी, सिंधी और राजस्थानी/मारवाड़ी का उल्लेख किया जा सकता है), इन सभी भाषाओं के साहित्य का मध्यकाल चल रहा था। प्राय: इन सभी भाषाओं में उत्कृष्ट साहित्य उपलब्ध था और सबकी अपनी अपनी सीमाएँ और प्रयोग के क्षेत्र परिभाषित थे, अर्थात इन भाषाओं का प्रयोग मूलत: घरों, (कुछ) धार्मिक क्रिया कलापों, प्रारंभिक शिक्षा और साहित्य तक सीमित था। भाषाओं (और काफी हद तक धर्म) का बखेड़ा शुरु हुआ भारत में जब अँग्रेजो का पदार्पण हुआ। इन सबके पीछे थी उनकी "one language/ethnicity one nation" वाली समझ; अब एक साथ इतनी सारे धर्म, जातियाँ, भाषाएँ और बोलियों को एक साथ देखकर दिमाग पगला गया इनका। अब शासन करना था तो यहाँ के भाषाओं की समझ लाज़िमी थी। तो "भाषाई मैपिंग" की जिम्मेदारी दी गयी सर जार्ज ग्रियर्सन साहब को जिन्होंने "लिंग्विस्टिक सर्वे आफ इंडिया" का बीड़ा उठाया और गड़बड़ी वहीं से शुरु हो गयी। साहब को एक तो ये पचाने में मुश्किल हुआ कि भारत के लोग आम तौर पर "बहुभाषी" होते हैं यानि एक साथ औसतन कम से कम दो-तीन भाषाएँ बोलते हैं (और कभी कभी ज्यादा भी)। दूसरे, उनका सर्वे का तरीक़ा, जिसमें तीन चीजें की जाती थीं क) एक फार्म भरना पड़ता था (जिसके बारे में अलग से चर्चा की जा सकती है), ख़) बाइबिल के एक सेट पैसेज का अनुवाद करना होता था ग) और जहाँ संभव होता था वहाँ उस खास भाषा का जिसका सर्वे हो रहा होता था उसके किसी "नेटिव स्पीकर" का "लाइव रिकार्डिंग" याने लाइव ट्रांसक्रिप्शन। दो वर्षों के अथक परिश्रम के बाद ग्रियर्सन साहब ने निष्कर्ष निकाला कि भारत में (जिसमें बर्मा भी शामिल था) लगभग 1500 भाषाएँ और 591 बोलियाँ हैं। उसके बाद शुरु हुई भाषा और धर्म की राजनीति।

(क्रमश:…)

3 comments:

  1. अब जा कर ईन्टर्नेट पे वो उपलब्ध हो रहा है जो जरूरी है हम लोगो के लिए जानना, उस भाषा मे उपलब्ध हो रहा है जो बोली और समझी जानी चाहिए.
    यह लेख माला बहुत कीमती रहेगी.
    हम तो बच्चे की भांती उत्सुक हैं - "आगे क्या हुआ..?"

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  2. विजय भाई ,
    बहुत सही विषय चुना है आपने | शुरुआत भी बहुत सटीक और सार्थक है | यह लेख शृखला बहुत पसन्द की जयेगी | अब मजा आ रहा है हिन्दी चिट्ठों की विविधता और बहुलता देखकर |

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  3. Good start. But your blog doesn't appear good in FireFox. It will be nice if you could fix your template.

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