मज़हबी आतंकवाद की हवा पूरी दुनिया में चल रही है, चाहे वो मुसलमानों का आतंकवाद हो, या इसाईयों और हिन्दुओं का आतंकवाद। यह शायद तबतक चलेगा जबतक हर मुल्क़ के नेता और हुक़्मरान सिर्फ़ अपने और अपने धर्म, समुदाय, जाति और वर्ग के लोगों का हित-साधन करते रहेंगे और भावनाएँ भड़काकर अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे। इन सब चीजों के बीच मीडिया की भूमिका सबसे अहम हो जाती है, पैसा पीटने के चक्कर में सारे सामाजिक और नैतिक सरोकार भुलाकर वे भी इस माहौल को हवा देने में परोक्ष और अपरोक्ष योगदान करते रहते हैं। और वहीं आपने शायद आजतक बौद्ध आतंकवाद या जैन आतंकवाद का कभी नाम भी न सुना होगा, लेकिन शायद जियो और जीने दो सिर्फ़ एक जुमला सा बना रहेगा……
प्रश्न
राम के दंगाइयों
अल्लाह के ज़िहादी
ईसा के तलबगारों
ऐ नक्सली दरिंदो
क्या तुमने कभी सोचा
क्यों बुद्ध मुस्कुराते
आतंक की शरण में
क्यों बौद्ध नहीं जाते
क्यों गाँधी ने कभी भी
कोई अस्त्र न उठाया
सर्वशक्तिमान भी पर
था उससे थरथराया!!
Friday, February 11, 2005
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आपके लेख और शीर्षक के बीच की कड़ी समझ नहीं पाया । क्या आप कोई मध्य मार्ग की बात कर रहे हैं ?
ReplyDeleteजी आशीष जी मैं तो सिर्फ़ इतना कहना चाह रहा हूँ कि जो लोग आतंक का रास्ता चुनकर सत्ता से टकराते हैं और जो सत्तासीन हैं उन दोनों को आपस में बातचीत कर कोई बीच का रास्ता तलाशना चाहिये जिससे दोनों वर्गों की भावनाओं का सम्मान कायम हो।
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