Thursday, May 05, 2005

रामायण प्रसंग

आज का अनुवाद: मैथिली लघुकथा "रामायण प्रसंग"
(एक)

……और तब……घोर अकाल पड़ा। गर्मी से लोगों के प्राण आकुल, धरती प्यासी और जनजीवन कठिन हो गया। कुएँ सूख गये, पोखरों में दरारें आ गयी। यहाँ तक कि नदी तक पानी रहित हो गयी। आकाश के इस छोर से उस छोर तक फैली हुई लाली रात में भी देखी जा सकती थी मानो आकाश को भी लू लग गया हो या फिर पूरी सृष्टि जल रही हो।

ऐसे समय में राजा जनक मिथिला में राज कर रहे थे। अकाल के कारणों का पता लगाने और उसके निवारण के लिए उन्होंने पण्डितों की सभा बुलाई। बड़े बड़े ज्योतिषि और पंडितों से प्रश्न किया गया कि इन्द्र भगवान क्यों अप्रसन्न हो गए। उनको कैसे प्रसन्न किया जा सकता है। पण्डितों ने बहुत सोच विचार के बाद यह निर्णय दिया कि यदि राजा जनक स्वयं हल चलाएँ तो इन्द्र महाराज का हृदय द्रवित हो सकता है और बारिश हो सकती है। राजा जनक खेत में हल जोतने के लिए सहर्ष तैयार हो गए। प्रजा का हित उनकी अपनी गरिमा थी। अत: राजा होने का अभिमान त्यागकर वे हल के साथ खेत में उतर आए। तभी हल के जमीन में लगते ही एक शिशु का रुदन सुनाई पड़ा। सभी का ध्यान उसी तरफ़ खिंच गया। लोगों ने देखा कि एक सुन्दर बालिका धरती से बाहर आ गयी है। धरती पर हर्ष की लहर दौड़ गयी। आकाश पर बादल छा गये। बरसों की प्यासी धरती बारिश के शीतल फुहार में हरिया गयी। दुर्भिक्ष समाप्त हो चला, जन-जन तृप्त हो गए।

(दो)
………और रामराज्य में लोग अत्यंत प्रसन्नतापूर्वक रहते थे। एक दिन राम ने किसी प्रजाजन के मुँह से कोई अपवाद कथा सुनकर सीता को त्याग दिया। राजा ने सीता को निर्वासित कर वन में भिजवा दिया। इस घटना से सीता को काफी दु:ख हुआ, किन्तु अपने गर्भ में स्थित राम के अस्तित्व की उसने रक्षा की तथा लव और कुश जैसे पराक्रमी पुत्रों को जन्म दिया। समय आने पर दोनो बालकों ने अपनी तेजस्विता का परिचय दिया। जब राजा ने उन बालकों के पराक्रम की कथा सुनी तो वे अपने पुत्रों को पहचान गए। उन्होंने वन में आकर बालकों से महल चलने का अनुरोध किया। दोनों भाई वापस जाने के लिए तैयार तो हो गये किन्तु उन्होंने अपनी माता को भी साथ ले जाने की इच्छा व्यक्त की। राजा राम सीता के अपवाद विषयक घटना भूले नहीं थे। वे सोच रहे थे कि इतने दिनों सीता वन में अकेली रह कर अपने सतीत्व की रक्षा कर पाई होगी कि नहीं। वे बोले यदि सीता पुन: अग्निपरीक्षा में उत्तीर्ण हो जाती है तो वो वापस महल जाने योग्य होगी। सीता को अपनी शुचिता का प्रमाण देने का यह दूसरा अवसर था। शंकालु राम के कठोर व्यवहार से दु:खी और कातर होकर वे बोल उठीं - हे धरती माते, यदि मेरे मन में राम के प्रति कोई अपमान का भाव नहीं रहा हो, और यदि मैंने राम के अलावा किसी अन्य पुरुष के प्रति आसक्त न हुई हूँ तो मैं तुमसे निवदेन करती हूँ कि अभी मुझे अपनी गोद में ले लो।

धरती फटी। उससे एक कमल प्रकट हुआ और कमल कोश में बैठ सीता ने पाताल को प्रस्थान किया।

"तब तो दीदी, फिर से अकाल पड़ा होगा !!" चन्दा ने मुझसे पूछा।

"क्यों?" हमने अचकचा कर पूछा।

"जैसे सीता के जन्म से दुर्भिक्ष समाप्त हो गया था, उसी तरह धरती में समा जाने से तो फिर से अकाल आ गया होगा" - चन्दा सरलता से बोल उठी।

"चुप रहो, जिस समय सीता धरती में विलीन हुई उस समय रामराज्य था" -- सुगन्धा, जो उससे कुछ बड़ी थी, गंभीर होती हुई बोली।

"तो क्या दीदी, रामराज्य में लोग बोलते नहीं थे, तो मैं भी चुप रहूँ?" -- चन्दा का प्रश्न जारी था।

"हाँ" -- मेरा छोटा और साधारण सा उत्तर था। तबतक घंटी बज गयी और हम कक्षा से बाहर आ गयीं।

लेखिका: नीरजा रेणु (असली नाम: श्रीमती कामख्या देवी), मूल कथा मैथिली में।
शाकुन्तल मुद्रणालय, इलाहाबाद 1996

2 comments:

  1. ठाकुर साब,
    ब्लाग का पोस्ट का हरेक की-स्ट्रोक अलग-अलग दिखत है, फायरफाक्स में सिर्फ । सामग्री जसटीफाई किया हुआ है क्या ।
    अनुवाद जारी रक्खैं , उत्तम प्रयास है ।

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  2. ओ ये जस्टीफाई करने से होता है क्या? काफी लोग शिकायत कर रहे हैं इस बात की मैं खुद ही परेशान था इस बात को लेकर, यही होता है अभी तो लिख लोढा पर पत्थर ही हूँ मैं टेक्नालजी के बारे में, ले-देकर ईमेल कर लेता हूँ या वर्ड प्रोसेसिंग। एकाध बार जीतू भैया और स्वामीजी उबार चुके हैं मुझे। खैर, प्वाइंट आउट करने का शुक्रिया आगे से अनजस्टीफाईड ही रहेगा :)

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