Saturday, September 27, 2008
नज़रिया बदला बदला
छोटे-छोटे शब्द, वाक्य, भाव-भंगिमाएँ या कुल मिलाकर कहें तो प्रतीक हमारी संप्रेषण क्षमता में कितना इजाफ़ा या बदलाव पैदा कर देते हैं जिसका असर कभी-कभी बिल्कुल चमत्कार की तरह होता है। ऊपर फिल्माये गये एक लघु-फिल्म जिसे ऊपर दर्शाया गया है इसमें एक अंधा व्यक्ति भिक्षा के लिए एक पात्र लेकर बैठता है और सामने एक तख्त होता है जिस पर लिखा होता है - मुझ अंधे की सहायता करें। लोग आते हैं जाते हैं, कोई उसकी तरफ ध्यान नहीं देता। इस बीच एक नौजवान वहाँ से गुजरता है, वहाँ रुक कर उसकी तख्ती का वाक्य बदल देता है। अब उसके डिब्बे में जैसे पैसे की बारिश होने लगती है। शाम को जब वही युवक वापस आता है तो वृद्ध अंधा व्यक्ति उसके पदचाप को पहचान कर उससे पूछता है कि तुम वही हो न जिसने मेरी तख्ती पर सुबह कुछ लिखा था? आखिर तुमने ऐसा क्या लिख दिया कि लोगों की करुणा जाग उठी? युवक ने क्या लिखा आप ऊपर फिल्म में देख सकते हैं। इस पाँच मिनट की फिल्म को ऑनलाइन लघु-फिल्म प्रतियोगिता में भी नामित किया गया है।
फिल्म आभार- यू ट्यूब, कथा पाठ आभार – साइट हेयर डॉट ऑर्ग (www.citehr.org)
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