Wednesday, September 24, 2008

पयामे हर्फ़


ज़र्द सयाही ने कहा है मुझसे

सोख ले आब चाहे तू मेरा

बनूँगा हर्फ मैं मगर लेकिन

रहूँगा बन के तेरी रूहों में

नमी बनकर बरस मैं जाऊँगा

तेरी सूखी हुई इन आँखों से


जलूँगा हर घड़ी तेरे सीने में

क़तरा-क़तरा मेरा शोला होगा

फिर न तू होगा न हर्फ कोई

मिटेंगे फासले तेरे मेरे सारे

नमी तो आसमां में बिखरेगा

मेरी इन बाजुओं की लपटों में

4 comments:

  1. बनूँगा हर्फ मैं मगर लेकिन रहूँगा बन के तेरी रूहों में नमी बनकर बरस मैं जाऊँगा तेरी सूखी हुई इन आँखों से
    वाह !

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  2. बड़ा विकट पिलान है।

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  3. फिर न तू होगा न हर्फ कोई

    मिटेंगे फासले तेरे मेरे सारे

    नमी तो आसमां में बिखरेगा

    मेरी इन बाजुओं की लपटों में

    good thought and expression"

    regards

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  4. जलूँगा हर घड़ी तेरे सीने में

    क़तरा-क़तरा मेरा शोला होगा

    फिर न तू होगा न हर्फ कोई

    मिटेंगे फासले तेरे मेरे सारे

    नमी तो आसमां में बिखरेगा

    मेरी इन बाजुओं की लपटों में


    बहुत बढिया रचना है।बधाई।

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