ज़र्द सयाही ने कहा है मुझसे
सोख ले आब चाहे तू मेरा
बनूँगा हर्फ मैं मगर लेकिन
रहूँगा बन के तेरी रूहों में
नमी बनकर बरस मैं जाऊँगा
तेरी सूखी हुई इन आँखों से
जलूँगा हर घड़ी तेरे सीने में
क़तरा-क़तरा मेरा शोला होगा
फिर न तू होगा न हर्फ कोई
मिटेंगे फासले तेरे मेरे सारे
नमी तो आसमां में बिखरेगा
मेरी इन बाजुओं की लपटों में
बनूँगा हर्फ मैं मगर लेकिन रहूँगा बन के तेरी रूहों में नमी बनकर बरस मैं जाऊँगा तेरी सूखी हुई इन आँखों से
ReplyDeleteवाह !
बड़ा विकट पिलान है।
ReplyDeleteफिर न तू होगा न हर्फ कोई
ReplyDeleteमिटेंगे फासले तेरे मेरे सारे
नमी तो आसमां में बिखरेगा
मेरी इन बाजुओं की लपटों में
good thought and expression"
regards
जलूँगा हर घड़ी तेरे सीने में
ReplyDeleteक़तरा-क़तरा मेरा शोला होगा
फिर न तू होगा न हर्फ कोई
मिटेंगे फासले तेरे मेरे सारे
नमी तो आसमां में बिखरेगा
मेरी इन बाजुओं की लपटों में
बहुत बढिया रचना है।बधाई।