वो लोग बहुत खुशकिस्मत थे
जो इशक को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे
हम जीते जी मशरूफ रहे
कुछ इश्क किया कुछ काम किया
काम इश्क के आड़े आता रहा
और इश्क से काम उलझता रहा
फिर आखिर तंग आकर हमने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया
(फैज अहमद फैज - 1976)
Wednesday, October 22, 2008
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फैज साहब की बात ही अलग है... शुक्रिया
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