आज का अनुवाद
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क्षार-अम्ल
विगलनकारी, दाहक…
रेचक, उर्वर
रेक्शेवाले के पीठ की ओर का
तार-तार फटा बनियान
पसीने के अधिकांश गुणधर्म को
कर रहा है प्रमाणित
मन होता है मेरा
विज्ञान के किसी छात्र से पूछूँ जाकर
कितना विगलनकारी होता है
गुणधर्म पसीने का
रिक्शेवाले के पीठ की चमड़ी
और होगी कितनी शुष्क-श्याम
स्नायुतंत्र की उर्जा और कितनी उबलेगी
इस नरवाहन की शक्ति
और कितनी सीझेगी…
और कितना……
क्षार, अम्ल, दाहक, विगलनकारी…
(मूल कविता: पसेना-क गुणधर्म, मैथिली में, कवि वैद्यनाथ मिश्र "यात्री"*)
पत्रहीन नग्न गाछ 1968 से अनूदित
*वैद्यनाथ मिश्र यात्री हिन्दी साहित्य में बाबा नागार्जुन के नाम से मशहूर हैं।
Tuesday, December 07, 2004
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खालिस भी छापिए न।
ReplyDeleteआलोक ठीक कहते हैं. ज़रा असली वाली भी छापिये.
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