मेरी हिन्दी कक्षा की एक चेलिन ने मैडिसन के एक रेस्टोरेन्ट 'महाराजा' की समीक्षा लिखी है प्रस्तुत हैं उसके कुछ दस-बारह वाक्यों में से कुछ "ब्रेकिंग सेन्टेन्सेज" । मेरे खयाल से हमारे सारे ब्लागी संत और संतियाँ जिनकी हिन्दी-ग्रंथि ठीक-ठाक है वे तो समझ ही जायेंगे। अगर किसी वाक्य के बारे में कुछ पूछना हो तो हाथ खड़े करें और तब तक खड़े रखें जब तक मैं आपके पास ना आ जाऊँ।
- रात के खाने के लिये अनेक चुनाव हैं।
- इसलिये इस खाने की मैं संस्तुति करती हूँ।
- भेंड़ साग नशीला है।
- खाने के बाद लस्सी या मदिरा पीजिये।
- खाने के बाद मिठाइयाँ सुलभ हैं।
- मैंने खाना को दो तारे दिये।
- प्राच्य महाराजा जाइये – कमाल के लोग – कमाल का खाना।
डिसक्लेमर: चेलिन की आलोचना यहाँ उद्देश्य नहीं है।
ठाकुर सा,
ReplyDeleteएक तो आप के चिट्ठे की एनकोडिंग में कोई अड़ंगा है। हमेंशा पहली बार कचरा नजर आता है। दूसरा ये कि ये हिन्दी कक्षा की कथा क्या है।
पंकज
लगता है विजय जी फ़िरङ्गियों को हिन्दी पढ़ाते हैं।
ReplyDeleteरात के खाने के लिये अनेक चुनाव हैं।
यानी कि खाने में व्यञ्जन कई हैं।
इसलिये इस खाने की मैं संस्तुति करती हूँ।
मतलब इन्हें यह खाना बहुत पसन्द है।
यूँ समझिए कि उनकी हिन्दी वैसी ही है जैसी हमारी अङ्ग्रेज़ी।
जी हाँ आलोक भाई, पढने के अलावा मेरे जिम्मे इस विश्वविद्यालय में हिन्दी पढाना भी शामिल है। विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी सिखाते हुये कई बार काफी रोचक गलतियाँ देखने को मिलती है। और इन गलतियों को अक्सर आप 'प्रेडिक्ट' कर सकते हैं। भाषाविज्ञान की दृष्टि से ये गलतियाँ हमारे भाषा सीखने की प्रक्रिया के बारे में बहुत कुछ सिखाती है।
ReplyDeleteखैर ये वाक्य सिर्फ एक शब्द के बदले दूसरे शब्द के प्रयोग से कैसा प्रभाव उतपन्न होता है इसलिये दिया था क्योंकि अक्सर ये छात्र जो शब्दकोष से देखकर लिखते हैं, संदर्भ से अपरिचित होते हैं।