लालू (प्रसाद यादव): एक ऐसा नाम जो चाहे दक्षिण का सुदूर त्रिचुर हो या उत्तर का अनंतनाग, पश्चिम का काठियावाड़ हो या पूरब का दीमापुर, न्यूयार्क हो या लंदन सब जगह जाना जाता है. और खासकर एक ही छवि में, ऐसा क्यों हैं ये सोचने की बजाय अनुगूंज के आयोजकों को पता नहीं कैसे लगा कि आतंकवादियों के पुनर्वास जैसे गंभीर मुद्दे पर बहस करने के बाद जो विषय वो उठा रहे हैं यानि लालू यादव के बारे में वो व्यंग्यातमक ही होना चाहिये, तभी बात बनेगी कुछ, बकौल आयोजक : "अब तक के सारे अनुगूँज धीरगंभीर विषय पर आधारित रहे हैं मेरे जेहन में है विषय तो गंभीर है पर लेख अगर व्यंग्यात्मक हों तो उद्देश्य पूरा हो जाये विषय है श्री लालू प्रसाद यादव"
यानि उद्देश्य साफ है भइया; ठलुअई तो करते ही हैं अब ललुअई हो तो कैसा रहे? मतबल मेरा कि थोड़ा इंटरटेनमेन्ट हो जाए तो कएसा रहे? लालू से अच्छा टाइमपास का बहाना का हो सकता है भला. हम तो समझ गये, ब्लाग पढनेवाले भी समझ ही गये गये होंगे, क्यों लल्ला, लल्लू ही रहोगे पूरे के पूरे. कई माई के लाल पता नहीं कैसे कब लालू से ललुआ आ फिर लल्लू बन गये और बना दिये गये. देखो लल्लू भाई अर्रर्र माफ़ करना भइये लालू साहब, इ सब पचरा तुम भी बूझता ही होगा पर एक ठो बतिया साफ-साफ बताय दें पहिले तुम बिहार में भंइसी का सींग पकड़ के चढ़ जाता था आ चाहे जो भी आहे-माहे करता था ऊ त ठीक था, पर अब तुम हो गिया है रेल मंतरी अओर ओ भी माननीय रेलमंत्री, अब इहाँ न भंइस है न बिहार बला कादो. ई दिल्ली है भाई, कुछ बदलो सरऊ अपने आप को. इहाँ सच्ची में हेमामालिन का गाल जइसा रोड है. आ लोग इहाँ हावा भी अंग्रेजीये में छोड़ता है, अओर एक ठो तुम है; सतुआ खा-खा के भजपूरी महकाता रहता है. पूरा संसद घिनाये रहता है, दिल्ली आ दुनिया का पीपुल से बात करना है भजपूरी नहीं चलेगा. थोड़ा दिन का बात होता त सब तुमको थोड़ा 'एक्जाटिक' 'नेटीभ' आ 'रूरल' समझ के इंटरटेन हो जाता इहाँ, लेकिन तुमको रहना है पाँच साल रे भाई, बतिया समझता काहे नही है. कुच्छे महीना में सब बोर हो जाएगा अओर इ सब वर्डवा बदल के 'देहाती भुच्च' बन जायेगा. अओर मीसा के बाबू, ई कुल्हड़-फुल्हड़ का चक्कर में तुम मत पड़ो ई सब करना था त गरामीन विकास मंतरालय काहे नहीं लिया रे सार, इस्टीले का कुल्हड़ चलवा देता गाँव-गाँव में, आ इस्टीले का नादी भी बनवा देता गाँव का सब भंइसियन के लिये, भंइसी सब केतना आसीरबाद देता तुमको, है कि नहीं. आ बहुत खुशी लगता तुमको त सब भईंसियन खातिर डबरा सब को स्वीमिंग पूल बनवा देता. एतना समझा रहा हूँ, माथा में कुछ ढुक रहा है कि नहीं. फईजत करा के रख देगा तुम त. अभी रमबिलसबा से कपड़-फोड़ौअल करबे किया था, अभी का जरुरत था रुपैया बाँटने का, एकदम से हड़बड़ा जाता है, अब देखो सब रमलील्ला मंडली घुसल है इलेकसन कमीसन में तभिये से. अभी बहुत टाइम है, अभीये से नरभसाओ मत, समझा कि नहीं, रबड़ी का टेक केयर हो रहा है बीना रीजन के बेओजह परेसान रहता है. अरे तुम सोनिया का खियाल रखता है त मैडमो खियाल रखबे करेगी, है कि नहीं. बुड़बक कहीं का, देखो परधानमंतरी बनना है तुमको त सब लंदफंदिया काम छोड़ना पड़ेगा अभी तुमको. दिल्ली में रहना है त दिल्लिये बला बन के रहना सीखो.
Sunday, December 26, 2004
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bahut sahee!
ReplyDeleteMajaa aa gayaa thaakur!
Bhojpuri shailee barkaraar rakho!