Tuesday, December 28, 2004

सुनामी लहरें

कल सुबू फिर से उठी लहरें
रौद्र होकर धरती से मिलने
लौट चली है अब घर अपने
आगोश में समेटे कस कर
कई यादें, कई सपने,कई रिश्ते
बिलखता छोड़ अपने पीछे
मातम की ये इंसानी बस्तियाँ
अरी ओ अल्हड़ सुनामी लहरें
हम तो यूँ भी आते थे पासतेरे,
शायद तुझे सबर ही नहीं
पर हारेंगे नहीं जान ले तू
तेरे इसी मलबे से निकलेंगे
और भी सपने, और भी रिश्ते नये.

No comments:

Post a Comment