Sunday, April 10, 2005

कल रात

आँखो ने

चखा

स्वाद

जुबाँ ने

तोड़ी झपकी

बोल पड़े

कान मेरे

गीत मधुर

सूँघकर

थिरक उठे

बाल मेरे।



कल रात

पी मैंने

दुनिया-

पगलाया,

समझ गया

कुछ नहीं

ये दुनिया

यूँ ही

रहती है

पगलाती सी।

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