गठरी
दर्द की अपनीनिकालती
यह रुग्णजर्जर काया
मौसम की मारबलात्कार
और सारेअत्याचार
कितनी सारीखाद्य सामग्री
कुछ खा पीकरसो रहती है
गठरी बाँधफिर से
बचा-खुचाकल के खाने की।
देखती है स्वप्नक़िस्मत बदल
जाने की।और रिसते
रहते हैंस्वप्न उसके
रात भरशीत बनकर।।
आशा ही जीवन है
पर किसकी आशा?
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