Sunday, April 10, 2005

तमन्ना

गति
ठहर गई साँस
गयी तुम
मौसम उदास


सबक
हुनर जीने का
सीख लूँ
मुँह चुरा, रोने का


अपरिचय
छाई जो ये बदली
दिल तो वही
धड़कन है अजनबी


तमन्ना
अबके ऐसी प्यास
सोचता हूँ
पी लूँ आकाश


धुन
सुनो के तुम भी
अंतर्वंशी
कहो भी मन की


करवट
सूरज की अँगड़ाई
जागता जीवन
ये कैसी घुट्टी पिलाई।

3 comments:

  1. बौनी ही सही
    हर कविता में पर
    क्या बात कही!

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  2. कविताएं दमदार हैं, पर तीन पंक्‍तियों की यह कोई नई विधा है क्‍या।

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  3. अब विधा वग़ैरह के बारे मे तो मुझे कुछ खास मालूम नहीं है, बस लिख गया, आपलोगों को पता चले कि ये किसी विधा में फिट हो रहा है तो मुझे भी बतायें। जहाँ तक मेरा ज्ञान है, हाइकू इसके सबसे नज़दीक है, लेकिन ये हाइकू में शायद फिट नहीं होता।

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