गति
ठहर गई साँस
गयी तुम
मौसम उदास
सबक
हुनर जीने का
सीख लूँ
मुँह चुरा, रोने का
अपरिचय
छाई जो ये बदली
दिल तो वही
धड़कन है अजनबी
तमन्ना
अबके ऐसी प्यास
सोचता हूँ
पी लूँ आकाश
धुन
सुनो के तुम भी
अंतर्वंशी
कहो भी मन की
करवट
सूरज की अँगड़ाई
जागता जीवन
ये कैसी घुट्टी पिलाई।
ठहर गई साँस
गयी तुम
मौसम उदास
सबक
हुनर जीने का
सीख लूँ
मुँह चुरा, रोने का
अपरिचय
छाई जो ये बदली
दिल तो वही
धड़कन है अजनबी
तमन्ना
अबके ऐसी प्यास
सोचता हूँ
पी लूँ आकाश
धुन
सुनो के तुम भी
अंतर्वंशी
कहो भी मन की
करवट
सूरज की अँगड़ाई
जागता जीवन
ये कैसी घुट्टी पिलाई।
बौनी ही सही
ReplyDeleteहर कविता में पर
क्या बात कही!
कविताएं दमदार हैं, पर तीन पंक्तियों की यह कोई नई विधा है क्या।
ReplyDeleteअब विधा वग़ैरह के बारे मे तो मुझे कुछ खास मालूम नहीं है, बस लिख गया, आपलोगों को पता चले कि ये किसी विधा में फिट हो रहा है तो मुझे भी बतायें। जहाँ तक मेरा ज्ञान है, हाइकू इसके सबसे नज़दीक है, लेकिन ये हाइकू में शायद फिट नहीं होता।
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